Thursday, June 19, 2025
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UPCL के प्रबंध निदेशक को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, बॉबी पंवार को लगा झटका

UPCL के प्रबंध निदेशक को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, बॉबी पंवार को लगा झटका,

टेंडर आवंटन में भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपति का था मामला, बॉबी पंवार ने दायर की थी याचिका.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड पॉवर कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक को बड़ी राहत दी है. नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड पॉवर कॉर्पोरेशन प्रबंध निदेशक के खिलाफ टेंडर आवंटन में भ्रष्टाचार करने व आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका खारिज कर दी है. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता बॉबी पंवार को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सक्षम न्यायालय में जाने की छूट दी है.

उच्च न्यायालय द्वारा बॉबी पंवार की जनहित याचिका (PIL) को खारिज किया जाना न सिर्फ कानूनी रूप से एक बड़ा झटका है, बल्कि यह उनके राजनीतिक स्टंट और सस्ती लोकप्रियता की असलियत को भी उजागर करता है।

हैरानी की बात यह है कि कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बॉबी पंवार की याचिका में कोई निष्कलंक मंशा नहीं है। इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी कहा कि यह मामला पहले से ही राज्य सरकार द्वारा जाँच के बाद बंद किया जा चुका है और अगर बॉबी को वास्तव में कोई शिकायत है तो उन्हें निचली अदालत में जाना चाहिए, न कि सीधे हाईकोर्ट में।

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने 6 जून को यह निर्णय सुनाया. जनहित याचिका में बॉबी पंवार का आरोप था कि उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ने टेंडर आवंटन में भ्रष्टाचार किया है. आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है. इस संदर्भ में वर्ष 2018 में पॉवर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन की एक जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला भी याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया.

राज्य सरकार ने अदालत को अवगत कराया कि कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने 8 जुलाई 2024 को इस मामले में जांच बंद करने का निर्णय लिया है. महाधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता स्वयं कई मामलों में आरोपी हैं. उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा है, इसलिये यह याचिका जनहित की आड़ में ‘पैसा वसूल’ याचिका प्रतीत होती है

महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर झारखंड राज्य बनाम शिव शंकर शर्मा 2022 एसएससी 1541 मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं जनहित नहीं, बल्कि निजी स्वार्थ से प्रेरित होती हैं. कोर्ट ने यह मानते हुए कहा कि मामले में तथ्यों, जांच और साक्ष्यों की समीक्षा करनी आवश्यक है. यह स्पष्ट किया कि यह कार्य सक्षम ट्रायल कोर्ट द्वारा किया जाना चाहिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराने के लिए सक्षम अदालत में जाने की स्वतंत्रता दी. साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया.

 

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